अनुवाद: पूर्वी जादव
गए सप्ताह इस लेख के भाग-१ में हमने देखा कि भारत सरकार के लिए LIC का निजीकरण करना करीब करीब असंभव क्यों हैं। भारत सरकार के लिए LIC यह एक सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी हैं। सरकार इसे मारना नहीं चाहेगी।
इस लेख का भाग-१ पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक को क्लिक करें: http://bit.ly/LICsprivatisationHindi
आइये अब जानते हैं अगर LIC का विनिवेश हुआ तो LIC के दृष्टिकोण से उसकी क्या असर हो सकती हैं।
LIC का दृष्टिकोण:
1. शेयर धारको द्वारा पूंजी का संचार:
मेरे ख़याल से LIC का विनिवेश हुआ तो LIC के ख़ुद के लिए यह बहुत अच्छा होगा। 1956 में मात्र 100 करोड़ रुपयों की पूँजी से शरू हुई LIC ने मार्केट में तहलका मचा दिया हैं। 63 साल पहले मिले इन चंद पैसो से LIC ने अपनी सभी विदेशी सहायक कंपनियों (subsidiary companies) की शुरुआत की है – जैसे कि LIC लंका, LIC नेपाल, LIC बाहरैन, LIC सिंगापुर, LIC बांग्लादेश।
विनिवेश के बाद शेयर धारको का नया पैसा LIC को मिलेगा। ज़रा सोचिये, LIC को 1,00,000 करोड़ रुपये और अधिक मिल गए तो यह क्या कर बैठेगी! हो सकता हैं वह अमेरिका और यूरोप की मार्केट में भी सनसनी मचा दे! यह भारत के भीतर बड़े बुनियादी ढांचे का निर्माण कर सकती है। यह बड़े स्तर पर अपने संचालन का विस्तार (expansion) कर सकती है। अपनी मानव सम्पत्ति जैसे कि Chairman, Acturies, Fund Managers इन पर खर्च करने के लिए LIC के पास अधिक धन होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के समकक्ष कार्यालय और सुविधाए होगी।
सॉल्वेंसी मार्जिन के रूप में, LIC के रु.44,000 करोड़ सरकार के पास पड़े हैं। ये पैसे पॉलिसी होल्डर्स के हैं। जिस पल LIC को शेयरधारकों से 1,00,000 करोड़ मिलते हैं, हो सकता हैं यह सरकार से अपने 44,000 करोड़ रुपये छुड़वा ले और उन्हें पॉलिसी धारकों के बीच एक अतिरिक्त बोनस के रूप में वितरित कर दे।
यह सबकुछ मुमकिन हो सकता हैं शेयर धारको का नया पैसा आने से!
इस तरह, LIC का अगर विनिवेश होता हैं तो LIC के ख़ुद लिए बहुत अच्छा साबित होगा। LIC की आज तक की प्रगति भी कुछ कम नहीं हैं, लेकिन विनिवेश बाद तो प्रगति का दर कईं गुना बढ़ जाएगी!
2. कुछ स्वतंत्र (बाहरी) लोगो का LIC के बॉर्ड में प्रवेश होगा:
निजीकरण के बाद, कुछ निजी स्वतंत्र लोग प्रबंधन और बोर्ड में प्रवेश करेंगे। यह LIC के लिए नया नहीं है। LIC के निदेशक (director) बनने के लिए स्वतंत्र लोगों को आमंत्रित करना यह आम बात हैं। 3 साल पहले, HDFC के chairperson, श्री दीपक पारेख LIC के बोर्ड सदस्य रह चुके हैं। निजी लोग मैनेजमेंट में आने से LIC के काम करने पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
3. सॉवरेन गॅरंटी:
LIC का एक मात्र प्रोमोटर होने के नाते भारत सरकार ने 1956 में LIC को धंदा शुरू करने के लिए (सिर्फ़) ५ करोड़ रुपये दिए थे। बदले में LIC हर वर्ष (1956 से लेकर आज तक) अपने मुनाफ़े का 5% हिस्सा भारत सरकार को देती आई हैं। पिछले साल LIC ने अपने मुनाफ़े के सिर्फ 5% हिस्से के रूप में Rs.2430 करोड़ का भुगतान भारत सरकार को किया।
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इसके अलावा भारत सरकार ने LIC पॉलिसी धारको को सॉवरेन गॅरंटी भी दी हुई हैं। LIC के आर्थिक तंगी या आर्थिक संकट के समय भारत सरकार पॉलिसी धारको को Sum Assued + Vested bonus देने के लिए उत्तरदायी हैं।
कुछ लोग बहस करते हैं कि LIC के निज़ीकरण के बाद यह सॉवरेन गॅरंटी भारत सरकार उठा लेगी। कृपया गौर करें, निज़ीकरण के बाद भी सॉवरेन गॅरंटी उठाना यह भारत सरकार के लिए ज़रूरी नहीं। यह गॅरंटी LIC Act 1956 के तहत दी गई हैं। निजीकरण के बाद भी इसे ज़ारी ऱखना यह क़ानूनी रूप से संभव हैं।
अगर हम मान ले कि, निजीकरण के बाद भारत सरकार सॉवरेन गॅरंटी उठा लेती हैं, तो भी LIC को इससे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। LIC के पास आज जो पूंजी हैं वह इतनी पर्याप्त हैं कि उसको सरकार के back-up की कोई आवश्यकता नहीं हैं।
1956 में 245 बिमा कंपनियों का विलय करके एक कंपनी, LIC का निर्माण किया गया था। सरकार द्वारा दी गई प्रारंभिक पूँजी रु. ५ करोड़, २४५ कंपनियों के एकत्रित ऋण को अदा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। उस समय के बीमा नियामक (IRDA की रचना तब नहीं हुई थी) ने पॉलिसी धारको के कल्याण को नजर में रखते हुए अधिक सुरक्षा की सरकार से मांग की। इसलिए भारत सरकार ने ५ करोड़ रुपयों के अलावा प्रॉमिसरी नॉट भी LIC को दी। इस प्रॉमिसरी नॉट के तहत, अगर कभी भी LIC अपने पॉलिसी धारको को पैसा अदा करने में असफल रहती हैं तो वह पैसा भारत सरकार उस पॉलिसी धारक को चुकाने के लिए वचनबद्ध हैं। इसे कहते हैं “सॉवरेन गॅरंटी”!
शुरू के ४ वर्षो को छोड़कर LIC ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया कि 1960 के बाद LIC के लिए सॉवरेन गॅरंटी का कोई महत्त्व रहा नहीं। आज LIC के पास 28,00,000 करोड़ के Life Fund के सामने 31,00,000 करोड़ की संपत्ति (assets) हैं। ३ लाख करोड़ के net excess assets ! अब LIC के लिए सॉवरेन गॅरंटी एक कागज़ के टुकड़े से ज्यादा और कुछ भी नहीं। फिर भी, सॉवरेन गॅरंटी की वजह से लोगो का विश्वास बढ़ता हैं और इसकी मार्केट में क़ीमत हैं।
लेकिन सॉवरेन गॅरंटी उठा लेने से LIC को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।
पॉलिसी धारको के दृष्टिकोण से:
निजीकरण के बाद पॉलिसी के ऊपर बोनस में बढ़ौती होगी:
कुछ लोगो का यह मानना हैं कि LIC के निज़ीकरण के बाद मुनाफ़े में बढ़ौती होगी और पॉलिसी धारको को ज़्यादा बोनस मिलेगा। यह गलत धारणा हैं।
कोई भी लिस्टेड बिमा कंपनी अपने रिकॉर्ड में दो प्रकार के खाते रखती हैं; शेयर धारको का खता व पॉलिसी धारको का खाता। शेयर धारको का पैसा यह कंपनी के लिए पूंजी माना जाता हैं। जब कि, पॉलिसी धारकों का पैसा (Life Fund) कंपनी के लिए Liability माना जाता हैं। हर वर्ष मुनाफ़े का 90% हिस्सा पॉलिसी धारको को बाँटना जरुरी हैं और 10% हिस्सा शेयर धारको को दिया जाता हैं। इस 90% में से 1 रूपया भी शेयर धारको को मिलने की संभावना नहीं हैं। निज़ीकरण के बाद सिर्फ इतना फर्क पड़ेगा की जो 10% मुनाफ़े का हिस्सा आज तक एक अकेले शेयर धारक (भारत सरकार) को दिया जाता था, वही 10% हिस्सा बहुत सारे शेयर धारको को मिलकर खाना पड़ेगा और शेयर धारको को उसी से संतुष्ट होना पड़ेगा।
इसके आलावा पॉलिसी बोनस के ऊपर इसका कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा; सकारात्मक भी नहीं और नकारात्मक भी नहीं।
(यहाँ जानकारी के लिए यह बताना जरुरी हैं कि भारत सरकार LIC से मुनाफ़े का 10 % हिस्सा पाने की हकदार होने के बावज़ूद भी फिलहाल सिर्फ 5 % मुनाफ़ा ही ले रही हैं।)
LIC के निज़ीकरण को लेकर हमने 3 अलग अलग हितधारकों (stake holders) के दृष्टिकोण की चर्चा की; भारत सरकार का दृष्टिकोण, LIC का दृष्टिकोण और पॉलिसी धारको का दृष्टिकोण।
इन सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद यह जाहिर हैं कि LIC का निज़ीकरण क़रीब क़रीब असंभव हैं। इसके बावजूद भी अगर भारत सरकार LIC का 5% हिस्सा भी विनिवेश करती हैं तो कोई भी एक बड़े प्राइवेट कॉर्पोरेट खिलाडी के लिए यह पूरा 5% हिस्सा एक साथ ख़रीद पाना बड़ा मुश्किल होगा। अगर भारत सरकार १०% हिस्सा विनिवेश करती हैं तो रिलायंस और टाटा जैसे बड़े ख़िलाड़ी मिलकर (jointly) इसे ख़रीद पाएंगे कि नहीं यह संदेह हैं। इस 5% व 10% का मूल्य हद से ज्यादा विशाल होगा कि किसी भी भारतीय बिज़नेस हाउस की ताकत नहीं इसे ख़रीद पाए।
LIC यह भारत सरकार का उपक्रम बना रहे इसीमें देश की भलाई हैं। कॉर्पोरेट ख़िलाड़ी दबाव बढ़ाएंगे, बार बार आप को ऐसी ख़बरे सुनने मिलेंगी। उनके पास पैसा बहुत हैं, मीडिया को खरीदना यह आज बड़ी बात रही नहीं। तर्क से सोचे तो भारत सरकार के लिए LIC का निज़ीकरण करना असंभव हैं। अगर सरकार को कुछ मजबूर कर सकता हैं तो वह हैं पैसों की ज़रुरत; पैसों की जरुरत को लेकर सरकार बहुत ही बेक़रार हो जाती हैं तो ही यह मुमकिन हो सकता हैं। अगर ऐसा हुआ तो वह देश के हित के ख़िलाफ़ होगा।
जय हिंद !