अनुवाद: पूर्वी जादव
हम अक्सर ऐसे समाचार सुनते रहते हैं कि सरकार LIC का निजीकरण करने जा रही हैं। इसका मतलब LIC में से सरकार की हिस्सेदारी कम होगी, निजी संस्थाओ का वर्चस्व बढ़ेगा। यह समाचार कितनी हद तक सही हैं वह तो कहना मुश्किल हैं लेकिन किसी प्रतिष्ठित संस्था या व्यक्ति के बारेमें समाचार छापने या टी. वी. पर दिखाने से मीडिया का धंदा बहुत अच्छा चलता हैं।
हर दो तीन साल में मीडिया LIC के लिस्टिंग को लेकर कुछ न कुछ समाचार प्रसारित कर विवाद खड़ा करती रहती हैं। इन दिनों यह समाचार इतना संवेदनशील क्यों लगता हैं उसका एक कारण अभी की सरकार जो सत्ता में हैं वह भी हो सकती हैं। मैं यह विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि जो कुछ भी वर्तमान सरकार कर रही हैं वह सही हैं या गलत, पर इतना जरूर हैं कि यह सरकार एक बार अगर कुछ करने की ठान ले तो वह करके छोड़ती हैं। किन्तु तार्किक रूपसे LIC को शेयर मार्केट में लिस्ट करने की कतई आवश्यकता नहीं हैं।
विषय को न्याय मिले इस हेतु तथ्यों की गहराई से चर्चा इस लेख में की गई हैं। इस वजह से यह लेख थोड़ा लम्बा हो गया हैं। वाचको की सुविधा के हेतु इस लेख को दे भागो में बाँट दिया गया हैं। भाग १ में भारत सरकार के दृष्टिकोण की चर्चा की गई हैं। जब कि भाग २ में LIC के दृष्टिकोण व पॉलिसी धारको के दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की गई हैं।
भारत सरकार के दृष्टिकोण से:
1. पूँजीकी आवश्यकता के लिए LIC का निजीकरण :
पूँजीकी आवश्यकता खड़ी होने पर सरकार LIC के शेयर पूंजी बाजार में बेचने के लिए रख सकती हैं। लगातार नुक्सान कर रही सरकारी कंपनियों का हिस्सा बेच कर सरकार उस कंपनी की पूंजी की आवश्यकता पूरी करती हैं। ONGC जैसी कंपनियों के लिए सरकार ऐसा कई बार कर चुकी हैं।
सरकार ने ONGC का निजीकरण क्यों किया? क्योंकि वह लगातार नुक्सान कर रही थी और उसे चलाने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं थे।
परन्तु यहां वह परिस्थिति नहीं है। LIC के पास पर्याप्त पूंजी हैं। वित्तीय वर्ष २०१७ – २०१८ में LIC ने कुल मिलाकर ३ करोड़ से अधिक पॉलिसियां बेचीं। हरेक नई पोलिसीके साथ LIC की उतनी Liability भी बढती हैं। हर जीवन बीमा कंपनी को हर एक नई पॉलिसी बेचने के बाद उतना Solvancy Margin (आरक्षित राशि) भी बढ़ाना पड़ता है। किन्तु उस वर्षमें LIC को ३ करोड़ पॉलिसी के सामने १ रूपया भी Solvancy Margin के तौर पर आरक्षित करने की जरुरत नहीं पड़ी, क्योंकि LIC ने पहले से ही पर्याप्त राशि आरक्षित की हुई थी। ३ करोड़ से ज्यादा पालिसी बेचना पर उस साल में १ रुपया भी Solvancy Margin न बढ़ाना यह घटना कोई भी जीवन बीमा कंपनी के लिए दुर्लभ ऐसी घटना हैं। यह LIC की वित्तीय स्थिरता (financial stability) का जीता जागता उदहारण हैं।
एक बहुत ही सरल बात हैं, कोई भी कम्पनीका मालिक, अपनी कंपनीके शेयर क्यों मार्केट में बेचता हैं? क्योंकि उसको कंपनी चलाने के लिए, कम्पनीका विस्तार करने के लिए या आरक्षण राशि के लिए पूँजी की (पैसों की) आवश्यकता हैं। यहाँ यह परिस्थिति नहीं हैं। LIC के पास इन सभी बातों के लिए पर्याप्त से कई अधिक पूँजी हैं। इसके बावजूद कंपनी का मालिक (भारत सरकार) LIC के शेयर क्यों मार्केट में बेचना चाहेगा? पूँजी की आवश्यकता के लिए LIC को शेयर मार्केट में लिस्ट करने की जरुरत नहीं हैं।
2. राजस्व (revenue) प्राप्त करने के लिए सरकार LIC का हिस्सा बेच सकती हैं:
ऐसी एक संभावना हैं कि सरकार राजस्व (revenue) प्राप्त करने के लिए LIC को शेर बाज़ार में लिस्ट करें। देश को अच्छी तरह से चलाने के लिए सरकार को हमेशा पैसो की जरुरत रहती हैं। LIC को लिस्ट करने से शेयर होल्डर्स के पास से LIC को बड़ा राजस्व प्राप्त हो सकता हैं। ऐसा करने से सरकार को पैसे तो मिल जायेंगे लेकिन सरकार को अपनी पूंजी और LIC के ऊपर का अपना नियंत्रण गवाना पड़ेगा।
कई मौको पर LIC ने हमारी अर्थव्यवस्था को बरबाद होने से बचाया हैं। ऐसी कई घटनाओं के वक्त अगर ऐन मौके पर LIC मदत न करती तो हमारी संपूर्ण अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान उठाना पड़ता। गत वर्ष जब IDBI गहरे संकट से गुज़र रही थी तब LIC ने IDBI का 55% हिस्सा ख़रीद लिया था और उसे व अपने देश को बहुत बड़े संकट से बचा लिया था। यह पूरा पैसा LIC ने एक ही किश्त में अदा किया। किसी भी प्राइवेट भारतीय कंपनी की (रिलायंस, टाटा, बिरला जैसी महाकाय कंपनी की भी) ताकत नहीं थी की वह IDBI का 55% हिस्सा ख़रीद कर उसे ज़रूरी पैसे एक ही बार में दे पाए। अगर यह विशालकाय कंपनियों (रिलायंस, टाटा, बिरला) में से किसी एक ने यह हिस्सा ख़रीदा भी होता तो भी वह पैसो का भुगतान १% से २% की छोटी छोटी किश्तों में बड़ी मुश्किल से कर पाते। और सरकार को यह पूरा पैसा बटोरने में २ साल लग जाते। संपूर्ण भारत वर्ष में LIC ही एक ऐसी कंपनी हैं जो इतना बड़ा पैसा एक ही बार में निकाल कर दे सकती हैं।
LIC का लिस्टिंग होने के बाद अगर ऐसा कोई आर्थिक संकट देश पर आता हैं तो सरकार कुछ नहीं कर पाएगी। ज्यादा से ज्यादा सरकार ऐसे प्रस्ताव को शेयर होल्डर्स की मीटिंग में रख सकती हैं। इसके अलावा सरकार कुछ नहीं कर पाएगी। उनके हाथ बंध जायेंगे।
LIC ने IDBI को बचा कर हमारी संपूर्ण अर्थव्यवस्था को डूबने से बचाया हैं, यूँ कहो अपने देश को बचाया हैं। अगर एक सरकारी बैंक, अपने वादे को निभाने में नाकाम होती हैं, तो ज़रा सोचिये हमारी दूसरी बैंको को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कौन पूछेगा? कौन इस देश में अपना पैसा निवेश करेगा? हमारी रेटिंग अंतरराष्ट्रीय मार्केट में गीर जाती हैं तो हमारी इक्विटी मार्केट और बॉन्ड मार्केट को अपना अस्तित्व टिका पाना भी मुश्किल हो जायेगा। अंतरराष्ट्रीय मार्केट में अपने देश के ख़राब रेटिंग के चलते छोटे व्यावसयिक से लेकर बड़े बड़े बिज़नेस हाउसेस को भी बहुत बड़ी मार सहन करनी पड़ती। हमारे देश की पूरी अर्थव्यवस्था बरबाद हो सकती थी।
LIC ने यह पहली बार देश को बड़े आर्थिक संकट से नहीं बचाया, कई बार, बार बार देश को बचाया हैं। ONGC, BHEL, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स, सत्यम कम्प्यूटर्स, IL & FS, कई बार बचाया हैं।
देश की १२ वी पंचवर्षीय योजना में LIC ने 704 लाख करोड़ का फंड देने का वादा किया था, जीसमे से LIC ६ लाख करोड़ रुपयों का भुगतान अब तक कर चुकी हैं। देश के विकास में से अगर LIC का हिस्सा निकाल दिया जाए तो शायद ही कुछ बचेगा। LIC का लिस्टिंग होने के बाद यह शेयर होल्डर्स निर्णय करेंगे कि LIC का पैसा देश के विकास में इस्तेमाल करना कि नहीं; अगर करना तो कितना पैसा इस्तेमाल करना। आमतौर पर शेयर होल्डर्स (इन्वेस्टर्स) संकुचित मनोवृत्ति रखते हैं, उनको सिर्फ अपने फायदे से मतलब होता हैं। देश के विकास में सबका विकास हैं यह उनको समझा पाना करीब करीब असंभव होता हैं। (गौर करें, LIC यह पैसा सरकार को दान के स्वरुप में नहीं देती, यह पैसा सरकार को लोन के स्वरुप में काफी ऊँचे ब्याज दर पर दिया जाता हैं। )
इस तरह, LIC का लिस्टिंग करके भारत सरकार को राजस्व (बड़ा मूल्य) तो प्राप्त हो जाएगा, किंतु, अपनी पूंजी गवानी पड़ेगी और LIC के उपर से अपना नियंत्रण गवाना पड़ेगा, जो एक बड़ी गलती साबित हो सकती हैं। भारत सरकार को ऐसा करना बहुत महंगा पड सकता हैं।
3. LIC लिस्टिंग के बाद ज्यादा कार्य-कुशल (efficient) हो जाएगी:
कुछ पंडित ऐसा तर्क लगाते हैं कि लिस्टिंग के बाद LIC ज़्यादा कार्यक्षम हो जाएगी, मुनाफ़ा बढ़ेगा और पॉलिसी होल्डर्स को ज़्यादा बोनस मिलेगा। सरकारी कंपनी होने की वजह से LIC इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही।
यह सरासर गलत तर्क हैं। भारत में कईं प्राइवेट बैंक हैं, प्राइवेट बिमा कंपनियां हैं, सेवा क्षेत्र में कईं और दूसरी प्राइवेट कम्पनियाँ हैं जो LIC के प्रदर्शन का मुकाबला नहीं कर पा रही। LIC एक ही कंपनी ऐसी हैं जिसने पिछले 63 वर्षो से लगातार मुनाफ़ा किया हैं, कभी नुकसान नहीं किया। सिर्फ बिन-सरकारी कंपनी (private company) होने से ही कंपनी कार्यक्षम हो जाती हैं तो सभी प्राइवेट कंपनियों से अनुरोध हैं कि LIC के इस प्रदर्शन की बराबरी करके दिखाए और बाद में LIC की टीका करें। बिमा, बैंकिंग, उत्पादन, ट्रेडिंग कोई भी क्षेत्र में ऐसी एक भी कंपनी बताओ जो LIC के इस रिकॉर्ड की बराबरी कर पाए। जब तक एक भी कंपनी यह प्रदर्शन की बराबरी नहीं करती तब तक उनको LIC के प्रदर्शन के बारे में बात करने का कोई हक़ नहीं। पहले लगातार 63 वर्षो तक मुनाफ़ा कमा कर दिखाओ फिर LIC के बारे में बात करो।
पिछले 63 वर्षों में LIC ने क्या क्या नहीं देखा! सरकार का हस्तक्षेप, अलग अलग सरकारों की अलग अलग विचारधाराए, (इंदिरा गाँधी सरकार की विचारधारा अलग व मोरारजी देसाई सरकार की विचारधारा अलग, कांग्रेस सरकार की विचारधारा अलग व बी. जे. पी. सरकार की विचारधारा अलग), कुदरती आपदाए, त्सुनामी, युद्ध, आर्थिक मंदी, शेयर मार्केट के उछाल व संकट….. इन सभी आपदाओं से निपटने के बाद भी, त्रेसठ – त्रेसठ सालो तक लगातार मुनाफ़ा करना, यह क्या खाने का काम हैं! BSE या NSE में लिस्टेड कोई एक कंपनी भी ऐसी बताइये जो इस रिकॉर्ड की बराबरी कर पाए। इतना ही नहीं, पूरी दुनिया में ऐसी एक भी बिमा कंपनी नहीं जो यह प्रदर्शन की बराबरी कर पाए (AIA, Prudential, Standard Life, Allianz, Zurich)। इन सभी प्राइवेट कंपनियों से भी मेरा अनुरोध हैं कि पहले अपने अपने देशों में जाकर अपने ख़ुद के प्रदर्शन को ठीक करें फिर LIC के बारे में बात करें। LIC जो भी कर रही हैं वह लाजवाब हैं। एक भारतीय होने के नाते हमे उस पर गर्व होना चाहिए।
अगर बैंक या फाइनेंसियल इंस्टिट्यूट द्वारा दी गई लोन का पैसा ब्याज सहित वापस आने की सम्भावना न हो, तो उसे नॉन – परफोर्मिंग एसेट्स (NPA) कहते हैं। करीब करीब भारत की हर एक सरकारी व प्राइवेट बैंक का NPA 7 % के आसपास हैं। कोई कोई बैंक इस मामले में 14 % तक जा चुकी हैं। इस वजह से हम आए दिन बैंको का दिवालिया होने की खबरें सुनते रहते हैं। लेकिन LIC की बात करें तो हाल में LIC का NPA 0.४३ % हैं। क्या यह लाजवाब प्रदर्शन नहीं?
LIC के कुछ एसेट्स नॉन – परफोर्मिंग हैं और बाकी के एसेट्स स्वस्थ (healthy) हैं यह कौन निश्चित करता हैं ? क्या LIC ख़ुद यह निश्चित करती हैं? नहीं। तीन स्वतंत्र संस्थान हैं जो यह निश्चित करते हैं कि LIC का NPA हाल में कितना हैं – Actuarial Society of India (ASI), Institute of Chartered Accountants of India (ICAI) और Life Insurance Council (association of all insurance companies operating in India).
IRDA हर बिमा कंपनी को 5 % NPA होने तक की छूट देता हैं, लेकिन LIC ने तो पहले से ही इसको 0.5% से भी कईं नीचे लाकर रख दिया हैं। क्या हैं यह ताकत किसी बैंक या फाइनेंसियल इंस्टिट्यूट में ? बिलकुल नहीं।
इतनी सारी संस्थाओं को लोन देने के बाद, इतने सारे शेयरों में निवेश करने के बाद भी LIC अपना NPA 0.43% तक सिमित रखने में कामियाब हुई हैं। लिस्टिंग के बाद भी कोई भी कंपनी इससे ज्यादा कार्य-क्षमता और क्या हांसिल कर सकती हैं? कृपया एक भी ऐसी लिस्टेड बैंक या फाइनेंसियल इंस्टिट्यूट बताइये जो इस बात में LIC का मुकाबला कर पाए। मुकाबले की बात छोड़ो, उनको NPA 7 % तक पकड़ के रखने में भी संघर्ष करना पड़ रहा हैं, अपनी कार्य क्षमता साबित करने में संघर्ष करना पड़ रहा हैं। इस मामले में 0.43% के आसपास भी कोई कंपनी या बैंक नहीं हैं।
यह बात हम मानते हैं कि LIC यह Publicity shy कंपनी हैं, अपने प्रदर्शन को इसने कभी encash नहीं किया।
कोई भी कंपनी या बैंक को लिस्टिंग करने से उसकी कार्य क्षमता बढ़ जाती तो सारी लिस्टेड बैंक व प्राइवेट कम्पनिया जो काफ़ी सालो से लिस्टेड हैं उन्होंने यह साबित करके दिखाया होता।
इसलिए LIC को लिस्टिंग करने के बाद LIC की कार्य – क्षमता बढ़ जायेगी यह मानना बेबुनियाद हैं। इस वजह से तो LIC को लिस्ट करने की ज़रुरत नहीं।
4. लिस्टिंग के बाद LIC का व्यवहार ज्यादा पारदर्शी हो जायेगा :
LIC की लिस्टिंग को लेकर कुछ लोग यह बहस करते हैं कि लिस्टिंग के बाद LIC का व्यवहार ज़्यादा पारदर्शी हो जाएगा।
कुछ disclosure norms होते हैं जिसका हर एक लिस्टेड कंपनी को पालन करना पड़ता हैं। इसकी वजह से पॉलिसी धारक को ख़बर रहती हैं कि कंपनी में क्या चल रहा हैं। दुनियाभरकी बिमा कंपनियों के लिए कंपनी के गठन के ५ या १० साल के अंदर अपने आपको लिस्ट करना जरुरी होता हैं। लिस्टिंग के बाद LIC को अपने सभी कागज़ाद, विवरण, डेटा, books of accounts सरकार के सामने रखना पड़ेगा; जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
आइये कुछ दिलचस्प बाते जानते हैं…! LIC का गठन Companies Act 1956 के तहत नहीं हुआ। LIC का गठन LIC India Act1956 के तहत हुआ हैं। LIC को नियंत्रित करने के लिए एक अलग ही कायदा हैं। हालांकि Companies Act के तहत disclosure norms का पालन करने के लिए LIC उत्तरदायी नहीं है, फ़िर भी वह स्वेच्छा से Companies Act 1956 के तहत disclosure norms के अनुसार अपने सभी दस्तावेजों और बयानों का खुलासा करती आई है। LIC का लिस्टिंग होने के बाद भी ऐसा एक भी अतिरिक्त दस्तावेज़ नहीं होगा जो LIC को सरकार को बताना पड़ेगा। सभी दस्तावेज़ का खुलासा LIC कई सालो से, हर साल कराती आई हैं। LIC, CAG Audit से आसानी से बच सकती है, लेकिन स्वैच्छिक रूप से हर साल LIC ने Statutory Audit को अपनाया है। इसके लिए 5 Statutory Auditors नियुक्त किए हैं। और यह प्रथा आज कल से नहीं है, या IRDA ने वर्ष 2000 में नियामक के रूप में कार्यभार संभाला तब से नहीं हैं; वर्ष 1960 से LIC इस प्रथा का पालन कर रही है।
इस तरह, LIC को लिस्ट करने के बाद भी LIC की पारदर्शिता में कुछ फर्क नहीं आएगा। जिसका व्यवहार पहले से संपूर्ण पारदर्शी हैं उसे और कितना अधिक पारदर्शी बना सकते हैं?
LIC का विनिवेश (disinvestment) करना तर्कसंगत क्यों नहीं है इसके बारे में सरकार के दृष्टिकोण से हमने 4 कारणों पर चर्चा की । यदि पैसा पाने के लिए सरकार बहुत ही बेताब हैं तो शायद सरकार LIC का विनिवेश कर भी सकती हैं, लेकिन यह सरकार के हित में बिलकुल भी नहीं है।
अगले सप्ताह, इसी लेख के भाग-२ में हम LIC के दृष्टिकोण व पॉलिसी धारको के दृष्टिकोण के बारे में चर्चा करेंगे।
अगले सप्ताह….