Malay Chitalia

Financial Planner, MDRT(USA)

आख़िर LIC नुकसान करने वाली कंपनियों में निवेश क्यों करती है? (भाग-1)

हम यह अक्सर सुनते आए हैं कि सरकार के दबाव में आकर LIC ने लगातार नुक्सान कर रही कंपनियों में पैसे लगाएं। कभी हमने यह भी सुना होगा कि बहुत भारी क़ीमत देकर LIC ने कोई एक कंपनी की हिस्सेदारी ख़रीदी।

कुछ महीनों पहले LIC पर IL & FS की हिस्सेदारी खरीदने पर मीडिया ने बड़ी आलोचना की थी। उससे पहले, LIC ने IDBI की बड़ी हिस्सेदारी खरीदने पर मीडिया ने आलोचना की थी।

जब मैंने LIC के साथ अपना व्यवसाय शुरू किया, तब मैं समझ नहीं पता था की LIC जैसी प्रतिष्ठित सरकारी कंपनी ऐसा काम क्यों करती है जिससे लोगो को उसकी निंदा करने का मौका मिले और स्वयं की प्रतिष्ठा को नुकसान हो !!? आज भी, सवाल मेरे मन में रहता है लेकिन एक अलग संदर्भ में; मीडिया LIC की आलोचना क्यों करता है? हमारा भारतीय मीडिया इतना नकारात्मक क्यों है?

ज़ाहिर है कि, यह पॉलिसीधारकों के मन में संदेह पैदा करता है, खासतौर पर तब, जब मीडिया इन खबरों को सनसनी खेज बना कर पेश करता है ।  LIC के बारे में कुछ तथ्य ऐसे हैं जिन्हें पॉलिसी धारक को जानना जरुरी है । यह तथ्य पक्षपातपूर्ण मीडिया कभी भी दुनिया के सामने नहीं रखेगा। इस स्थिति में, उन सभी तथ्यों को आपके साथ बाँटना यह मेरा कर्त्तव्य बनता है ताकि आप भविष्य में गुमराह न हों। इसी बात ने मुझे यह लेख लिखने के लिए प्रेरित किया है।

इस विषय की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, मैंने इस लेख को विस्तार से लिखने की छूट ली है जिसने इस लेख को थोड़ा लंबा बना दिया है। लेकिन मुझे यकीन है कि पूरा लेख पढ़ने के बाद निश्चित रूप से पाठक इसकी सराहना करेंगे। यहां पर चर्चा किये गए तथ्य वाकई में आँखे खोल देने वाले हैं। इस लेख को लिखने हेतु, संशोधन के पीछे काफी प्रयत्न व समय का निवेश हुआ है।

वाचको की सुविधा के लिए मैंने इस लेख को दो भाग में बाँट दिया हैं। इस लेख़ का दूसरा भाग अगले सप्ताह में प्रकाशीत होगा।

मीडिया के लिए LIC की आलोचना करना यह नयी बात नहीं हैं। भूतकाल में भी यह कई बार हुआ हैं। और मुझे यकीन है, यह भविष्य में भी दोहराया जाएगा। जब भी LIC किसी कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी ख़रीदती हैं, तो उस के ऊपर सवाल उठाया गया है। लेकिन ये सभी स्टॉक LIC के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुए हैं। अल्प कालावधि में यह बात एक आम आदमी के लिए हज़म करना थोड़ा मुश्किल हैं, लेकिन लम्बी कालावधि में, शुरुआत में मीडिया द्वारा आलोचना कीए गए सभी निवेश सबसे अधिक लाभदायक साबित हुए है।

जब LIC ने ONGC की हिस्सेदारी खरीदी, तो मीडिया द्वारा बड़ी आलोचना हुई;

“LIC सरकारी दबाव के कारण ONGC को बचाना चाहती है,

 “नुकसान कर रही ONGC को बचाने के लिए LIC पॉलिसीधारकों का पैसा लगा रही हैं”

इकोनॉमिक टाइम्स ने “LIC playing White Knight” शीर्षक के साथ एक विवादास्पद समाचार लिखा। (‘व्हाइट नाइट’ का शाब्दिक अर्थ – एक “मासूम संरक्षक” या  “निर्दोष उद्धारकर्ता” ऐसा होता हैं) यह आलेख अत्यधिक प्रभावशाली रहा और उसने LIC के पॉलिसीधारकों को काफी हद तक हतोत्साहित किया।

दिलचस्प बात यह है कि, 2018 में, उसी समाचार पत्र ने लिखा कि “ONGC यह LIC के पोर्टफोलियो में शीर्ष 20 उच्च प्रदर्शन करने वाले शेयरों में से एक है।” उन्होंने यह भी लिखा कि LIC का अब तक का कोई सबसे फायदेमंद सौदा होगा तो वह ONGC का रहा हैं। (हालाँकि ONGC की ख़रीदी के वक्त LIC की आलोचना करने के लिए माफ़ी का एक शब्द भी उन्होंने लिखा नहीं!!)

LIC एक विशाल निगम है जिसमें एक ठोस वित्तीय-स्थिति (financial standing) और धारण-क्षमता (holding capacity) है। जब छोटे छोटे निवेशक गिर रहे बाज़ार से भागने लगते हैं तब LIC परिकलित जोखिम (calculated risk) लेकर अपनी ठोस वित्तीय स्थिति के ज़रिये (financial standing) कुछ अच्छे स्टॉक कम दामों पर बड़ी मात्रा में ख़रीद कर लेती हैं। उसके विपरीत, बढ़ते हुए बाज़ार में जब छोटे निवेशक माल की ख़रीद करते हैं तब LIC अपने मौजूदा स्टॉक को अधिक दामों पर बेच कर बड़ा मुनाफ़ा कमा लेती हैं।

यह जानना बहुत दिलचस्प हैं कि LIC निवेश कैसे करता है। LIC की इस निवेश-प्रक्रिया को जानने के लिए आइये थोड़े गहरे पानी में जाते हैं।

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निवेश-नीति (चरण एक): Investment Policy (Stage 1):

बीमा अधिनियम 1938 की धारा 27, LIC को निवेश कहाँ करना, कैसे करना, किस मात्रा में करना  इसके के बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश देता है। उसी दिशा में, LIC अपनी निवेश-नीति तैयार करता है और इसे भारत सरकार को प्रस्तुत करता है। भारत सरकार या तो उसे मंज़ूर करती हैं या तो उसमे बदलाव का आदेश देती हैं। इस निवेश-नीति के मुताबिक, निवेश करने के दौरान कुछ प्रक्रियाएं निर्धारित की गई हैं और उसका LIC को पालन करना है। किसी विशेष कंपनी की प्रमुख हिस्सेदारी खरीदने सहित किए गए सभी निवेशों को LIC की अपनी निवेश नीति द्वारा सख्ती से नियंत्रित किया जाता है।

निवेश-समिति (चरण दो): Investment Committee (Stage 2):

जब यह मूल्यांकन किया जाता है कि किसी विशेष मूल्य-बैंड पर थोक में एक विशेष स्टॉक खरीदना LIC के लिए फायदेमंद होगा, तो LIC का निवेश-विभाग (Investment Department) उस विशेष सौदे के प्रस्ताव को तैयार करता है और इसे निवेश-समिति और अध्यक्ष के समक्ष रखता है।

यह जानना बहुत दिलचस्प है कि LIC के अपने विशेषज्ञ अधिकारियों के अलावा, LIC के बाहर से कुछ उच्च योग्यता वाले लोग इस निवेश-समिति के सदस्य हैं। उदाहरण के लिए, HDFC के वर्तमान अध्यक्ष LIC की निवेश-समिति के सदस्यों में से एक है। तीन साल पहले श्रीमती चंदा कोचर (ICICI बैंक के पूर्व प्रबंध-निदेशक और CEO) निवेश समिति में थे। भारत सरकार के वित्त-सचिव भी समिति के सदस्यों में से एक है। इसका मतलब है कि वे सिर्फ LIC के लोग नहीं हैं जो समिति में हैं; लेकिन बाहरी लोग भी हैं जो इस उद्योग में निवेश के दिग्गज़ माने जाते हैं । उल्लेख करने की कोई आवश्यकता नहीं  कि जब इन निवेश-दिग्गजों द्वारा एक प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती है, तो इसका कुछ अर्थ होगा।

LIC बोर्ड (चरण तीन): LIC Board (Stage 3)

जब निवेश-दिग्गजों से जुड़ी निवेश-समिति प्रस्ताव को मंजूरी देती है, तो यह LIC बोर्ड के पास जाता है। LIC बोर्ड में बहुत ही प्रतिष्ठित ऐसे व्यक्तित्व शामिल हैं।

सिर्फ बहुमत के साथ किसी भी प्रस्ताव को मंजूर करना यह LIC बोर्ड की पद्धति नहीं है। बोर्ड में आया हुआ कोई भी प्रस्ताव हर एक निदेशक की सर्वसम्मति हो तो ही उसे मंजूरी की मोहर मिलती है । इसका मतलब है कि प्रत्येक निदेशक को इसे मंजूरी देनी चाहिए, फिर केवल कोई भी प्रस्ताव यह निर्णय बनकर अगले चरण में जाता हैं।

IRDA (चरण 4):

निवेश-समिति और LIC बोर्ड द्वारा विधिवत अनुमोदित प्रस्ताव IRDA (भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण) को मंजूरी के लिए जाता हैं। IRDA एक सरकारी संस्था हैं जो पूरे बीमा-क्षेत्र और भारत में बीमा से संबंधित मामलों को नियंत्रित करती है। IRDA की अपनी निवेश-समिति और बीमांकन-समिति भी रहती हैं जो प्रस्ताव का विधिवत अभ्यास करती हैं। यदि IRDA के दिशानिर्देशों के खिलाफ कोई भी प्रस्ताव है, तो उसे खारिज कर दिया जाता है।

उदाहरण के लिए, HDFC Life अपनी हिस्सेदारी को एक कंपनी को बेचना चाहती थी, लेकिन IRDA ने शेयर के मूल्य के साथ असहमत होकर सौदे को अवरुद्ध कर दिया। HDFC को उस प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा। अगर कोई बीमा कंपनी अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहती है तो उचित मूल्य-बैंड होना चाहिए। कई मामलों में IRDA ने सामने चलकर खुद मूल्य-बैंड को निर्धारित किया है। बाद में, HDFC एक और खरीदार को लेकर आया, दूसरी बार भी उसे अस्वीकार कर दिया गया। तीसरी बार प्रस्ताव रखा गया, तब जाकर उसको IRDA की मंजूरी मिली और सौदा हो पाया।

एक अन्य मामले में, SBI Life ने अपने शेयर BNP Paribas को बेचे। यह सौदा IRDA के द्वारा ही हो पाया।

कोई भी प्रस्ताव जो हितधारकों (Stake Holders) के हित को प्रभावित करता है, उसको IRDA द्वारा बहुत सख्ती से निपटाया जाता है। (हितधारक जैसे कि पॉलिसीधारक, शेयरधारक, आपूर्तिकर्ता, सहयोगी, कर्मचारी, समाज इत्यादि) LIC के हाल ही के IDBI सौदे पर, IRDA पूरा दिन बैठा था। उस सौदे को छोड़कर उस दिन कोई अन्य कार्यसूची (agenda) नहीं थी। उन्होंने पूरे प्रस्ताव का बारीकी से निरिक्षण किया, अभ्यास किया और उसे ठीक पाया। जब उन्हें यह लगा कि इस प्रस्ताव को मंजूरी देने से किसी भी हितधारक को अन्याय नहीं होगा, और LIC नियमोंके आधीन होकर काम कर रही हैं तब जाकर IRDA ने उस प्रस्ताव को अनुमति दी।

जब IRDA किसी भी सौदे को मंजूरी देता है, तो ही केवल सौदा हो पाता हैं।

इन सभी प्रक्रियाओं के गुज़रने के बाद, कोई कैसे कह सकता है कि इस सौदे में कोई फिक्सिंग है? मीडिया अक्सर यह लिखता हैं कि “क्यों LIC एक विशेष स्टॉक 100/- रुपये पर खरीदने की बजाय 140/- रुपये में खरीद रहा हैं?” लेकिन क्या कीमत पर टिपण्णी करना यह मीडिया का काम हैं? नहीं। यह निवेशक (LIC) का निर्णय है। यह निवेशक का क्षेत्र और क्षेत्राधिकार है। निवेशक का निर्णय सही साबित हो सकता है; यह गलत भी साबित हो सकता है। LIC गलती कर सकती है। लेकिन एक विशिष्ट किंमत पर एक विशिष्ट स्टॉक की खरीदी करना यह LIC का विवेकाधिकार है, मीडिया का नहीं।

श्री वारेन बफेट को “निवेश का मसीहा” (Prophet of Investment) माना जाता हैं। उन्होंने भी कुछ गलतियां की हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र (Information Technology Sector) को संभावनाओं वाले क्षेत्र के रूप में पहचानने में उन्होंने बहुत देर कर दी थीं। उसी तरह, LIC कुछ बुनियादी न्यायिक गलतियां कर सकता है। लेकिन वे गलतियां हैं। वे घोटाले नहीं हैं। हम क्यों भूल जाते हैं कि LIC भी मनुष्यों द्वारा ही चलती हैं!

जब मीडिया LIC के प्रत्येक सौदे की आलोचना करता है, तो यह मेरे मन में संदेह पैदा करता है। किसके निर्देश से वे LIC की आलोचना करते हैं? क्या वे बाहरी शक्तियां (कंपनियां) हैं जो मुफ्त के भाव में वही स्टॉक खरीदना चाहती हैं (LIC भाव की तुलना में काफ़ी कम)? LIC की बड़ी धारण-क्षमता (Holding Capacity) और सौदेबाजी-शक्ति (Bargaining Power) ऐसी कंपनियों के लिए सबसे बड़ी बाधा हो सकती है। यदि, किसी भी तरह, LIC सौदे से हट जाता है, तो वे अपना भाग्य आज़मा सके। क्या यह कुछ निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों का वित्तीय बाहुबल (financial muscle) तो नहीं जो भारतीय मीडिया की राय को निर्देशित करता रहता हैं?

पिछले साल LIC ने गत वर्ष के मुनाफे में 33% की वृद्धि के साथ सिर्फ़ ONGC शेयरों पर ही 2838 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा अर्जित किया था (लाभ में 33% की वृद्धि एक बड़ी वृद्धि है)। LIC ने इस घटना का जश्न मनाया नहीं। ONGC की हिस्सेदारी खरीदने के दौरान मीडिया द्वारा अपने चरित्र पर लगाए गए आरोपों पर LIC रोई भी नहीं। LIC ने महसूस किया कि पॉलिसीधारकों को अधिकतम लाभ देना यह हमारा काम है।

कुछ मीडिया ने टिप्पणी की कि IDBI सौदा LIC को तरलता-संकट (liquidity crises) में डाल देगा। मान लेते हैं कि LIC 10,000 करोड़ में IDBI या IL & FS खरीदना चाहती है। LIC के लिए 10,000 करोड़ क्या है ?! यह राशि LIC के 5 दिनों के नकद-संग्रह (counter collection) के बराबर है। LIC विभिन्न काउंटरों पर प्रति दिन 2,000 करोड़ रुपये एकत्र करता है [LIC का प्रति दिन राजस्व (per day revenue) 2,000 करोड़ रुपये है] । यह छोटी राशि LIC को तरलता संकट में कैसे डाल सकती है?

पूरी मनी मार्केट (Money Market) दिन-दर-दिन LIC के काउंटर-संग्रह पर बारीकी से नजर रखता है। वे जानना चाहते हैं कि LIC कल सुबह बाजार में कितना पैसा लाएगा। वैसे ही, LIC भी बैंकिंग उद्योग के ऊपर दैनिक रूप से बड़ी बारीकी से नज़र रखती हैं। LIC जानना चाहती है कि कल पैसे के लिए बैंको की भूख (मांग) क्या होगी, ताकि LIC उनसे उच्च ब्याज दर वसूल कर सके। पिछले साल LIC ने सिर्फ़ मनी मार्केट से मासिक भारित औसत उपज (monthly weighted average yield) 2.5% से 12.45% कमाया था। (सरल शब्दों में, LIC ने प्रति माह न्यूनतम 2.5% ब्याज प्रति माह से लेकर अधिकतम 12.45% ब्याज अर्जित किया)। अब, क्या यह एक बड़ा मुनाफ़ा नहीं है ??

जब एक आम आदमी धारण-क्षमता (Holding Capacity) के बारे में सोचता है, तो वह 5 साल की अवधि के लिए सोचता है, लेकिन जब LIC जैसी विशालकाय कंपनी धारण-क्षमता (Holding Capacity) के बारे में सोचती है, तो यह 50 साल के कार्यकाल के बारे में सोचती है। जो LIC के लिए सही हैं वह एक आम निवेशक के लिए सही नहीं भी हो सकता; और जो एक आम आदमी को सही लगता हैं वह LIC के लिए सही नहीं भी हो सकता। निवेशक को निवेश करते समय परिकलित-जोखिम (calculate risk) लेना पड़ता है।

एक बार LIC ने कॉर्पोरेशन बैंक के 26% शेयर ख़रीदे थे । मीडिया ने उस समझौते की भी काफ़ी आलोचना की थी। उसके बाद LIC ने कॉरपोरेशन बैंक की अपनी हिस्सेदारी बहुत अधिक दर पर बेची।

इस लेख़ को यहाँ मैं विराम देना चाहता हूँ। इस लेख़ के भाग-2 में हम चर्चा करेंगे कि कैसे LIC ने भारतीय अर्थवयवस्था को नुक्सान करने वाली बड़ी घटनाओं में से देश को बचाया।

सत्यम कम्प्यूटर्स की अव्यवस्था और अंबानी भाइयों के विवाद में LIC की भूमिका, LIC की मज़बूत आर्थिक स्थिति, LIC का रेलवे में निवेश जैसे कई पहलू इस लेख के भाग-2 में सम्मिलित करेंगे।

To be continued…

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Malay Chitalia is an internationally accredited financial advisor with deep local roots. As an MDRT-qualified financial planner, he is part of an elite group of global professionals. With two decades of prolific experience in financial planning advisory, Malay manages an impressive 100 Crores+ AUM for his 2000+ valued clients across India and countries like the US, UK, UAE, Oman, Hong Kong, Australia, New Zealand, and more. Residing in Mumbai with his family, he operates from his firm’s headquarters in Borivali, Mumbai.

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